Sunday 11 September 2016

दीपा मैडम


Deepa Madam : बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले
बाथरूम की ओर जाते समय पीछे से उसके भारी और गोल मटोल नितम्बों की थिरकन देख कर तो मेरे दिल पर छुर्रियाँ ही चलने लगी। मैं जानता था पंजाबी लड़कियाँ गाण्ड भी बड़े प्यार से मरवा लेती हैं। और वैसे भी आजकल की लड़कियाँ शादी से पहले चूत मरवाने से तो परहेज करती हैं पर गाण्ड मरवाने के लिए अक्सर राज़ी हो जाती हैं। आप तो जानते ही हैं मैं गाण्ड मारने का कितना शौक़ीन हूँ। बस मधु ही मेरी इस इच्छा को पूरी नहीं करती थी बाकी तो मैंने जितनी भी लड़कियों या औरतों को चोदा है उनकी गाण्ड भी जरूर मारी है। इतनी खूबसूरत सांचे में ढली मांसल गाण्ड तो मैंने आज तक नहीं देखी थी। काश यह भी आज राज़ी हो जाए तो कसम से मैं तो इसकी जिन्दगी भर के लिए गुलामी ही कर लूं।
इसी कहानी से……




हमारी शादी को 4-5 महीने होने को आये थे और हम लगभग रोज़ ही मधुर मिलन (चुदाई) का आनंद लिया करते थे। मैंने मधुर को लगभग हर आसन में और घर के हर कोने में जी भर कर चोदा था। पता नहीं हम दोनों ने कामशास्त्र के कितने ही नए अध्याय लिखे होंगे। पर सच कहूं तो चुदाई से हम दोनों का ही मन नहीं भरा था। कई बार तो रात को मेरी बाहों में आते ही मधुर इतनी चुलबुली हो जाया करती थी कि मैं रति पूर्व क्रीड़ा भी बहुत ही कम कर पाता था और झट से अपना पप्पू उसकी लाडो में डाल कर प्रेम युद्ध शुरू कर दिया करता था।
एक बात आपको और बताना चाहूँगा। मधुर ने तो मुझे दूध पीने और शहद चाटने की ऐसी आदत डाल दी है कि उसके बिना तो अब मुझे नींद ही नहीं आती। और मधुर भी मलाई खाने की बहुत बड़ी शौक़ीन बन गई है। आप नहीं समझे ना ? चलो मैं विस्तार से समझाता हूँ :
हमारा दाम्पत्य जीवन (चुदाई अभियान) वैसे तो बहुत अच्छा चल रहा था पर मधु व्रत त्योहारों के चक्कर में बहुत पड़ी रहती है। आये दिन कोई न कोई व्रत रखती ही रहती है। ख़ास कर शुक्र और मंगलवार का व्रत तो वो जरूर रखती है। उसका मानना है कि इस व्रत से पति का शुक्र गृह शक्तिशाली रहता है। पर दिक्कत यह है कि उस रात वो मुझे कुछ भी नहीं करने देती। ना तो वो खुद मलाई खाती है और ना ही मुझे दूध पीने या शहद चाटने देती है।
लेकिन शनिवार की सुबह वह जल्दी उठ कर नहा लेती है और फिर मुझे एक चुम्बन के साथ जगाती है। कई बार तो उसकी खुली जुल्फें मेरे चहरे पर किसी काली घटा की तरह बिखर जाती हैं और फिर मैं उसे बाँहों में इतनी जोर से भींच लेता हूँ कि उसकी कामुक चित्कार ही निकल जाती है और फिर मैं उसे बिना रगड़े नहीं मानता। वो तो बस कुनमुनाती सी रह जाती है। और फिर वो रात (शनिवार) तो हम दोनों के लिए ही अति विशिष्ट और प्रतीक्षित होती है। उस रात हम दोनों आपस में एक दूसरे के कामांगों पर शहद लगा कर इतना चूसते हैं कि मधु तो इस दौरान 2-3 बार झड़ जाया करती है और मेरा भी कई बार उसके मुँह में ही विसर्जित हो जाया करता है जिसे वो किसी अमृत की तरह गटक लेती है।

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